अयोध्या विवाद में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक हिंदू पक्षकार को 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' के तहत लिखित नोट दाखिल करने की इजाजत दे दी। उमेश चंद्र पांडेय की तरफ से दाखिल नोट में मांग की गई है कि अगर अयोध्या की विवादित भूमि हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों को नहीं दी जाती है, तो 2.77 एकड़ जमीन को सरकारी घोषित किया जाए।
पांडेय को यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने 1961 में दायर एक मुकदमे में प्रतिवादी बनाया था। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच के सामने 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' पर लिखित नोट दाखिल करने के लिए अपना पक्ष रखा। पांडेय के वकील वी शेखर ने तारीख गुजर जाने के बाद 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' के तहत लिखित नोट दाखिल करने की अनुमति मांगी थी। इस पर बेंच ने कहा, “हमें लगता है कि अयोध्या मामले की सुनवाई पूरी हो चुकी हैंं।” हालांकि एस ए बोबडे और एस ए नजीर की बेंच ने लिखित नोट दाखिल करने की अनुमति दे दी।
लॉर्ड कैनिंग ने जमीन को सरकारी घोषित किया था
पांडेय ने अपने नोट में कहा कि अवध के पूरे क्षेत्र को लॉर्ड डलहौजी ने 1856 में 'नवाब' की नजरबंदी के बाद रद्द कर दिया था। 3 मार्च, 1858 को लॉर्ड कैनिंग ने ब्रिटिश सरकार के पक्ष में अवध के मालिकाना हक की घोषणा की थी। इसके बाद, अयोध्या में विवादित जमीन 'नजूल' (सरकारी) भूमि बन गई और आज भी वही स्थिति बरकरार है। इसे मुस्लिम पक्षकारों ने भी स्वीकार कर लिया है।
निर्वाणी अखाड़े को भी अनुमति मिली थी
इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को निर्वाणी अखाड़े को 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' पर लिखित नोट दाखिल करने की इजाजत दे दी थी। निर्वाणी अखाड़े ने अयोध्या में विवादित स्थान पर स्थापित मूर्ति की पूजा के प्रबंधन का अधिकार देने की मांग की थी।
मोल्डिंग ऑफ रिलीफ के मायने
- सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 और सीपीसी (सिविल प्रोसिजर कोड) की धारा 151 के तहत इस अधिकार का इस्तेमाल करता है। खासतौर पर संपत्ति के मालिकाना हक यानी टाइटल सूट डिक्री के मामलों में 'मोल्डिंग ऑफ रिलीफ' का प्रावधान है। इसमें तय किया जाता है कि याचिकाकर्ता ने कोर्ट से जिस संपत्ति की मांग की है। अगर कोर्ट अपने फैसले में उसे नहीं देता है तो विकल्प के तौर पर उसे क्या दिया जा सकता है।
- अयोध्या के मामले को देखें, तो एक से अधिक दावेदारों वाली जमीन का मालिकाना हक किसी एक पक्ष को मिलने पर अन्य पक्षों को इसके बदले क्या मिलेगा, मोल्डिंग ऑफ रिलीफ के जरिए इस बारे में लिखित नोट फाइल कराए गए हैं।
अयोध्या विवाद पर फैसला सुरक्षित
अयोध्या विवाद में 2 अगस्त से लगातार चली सुनवाई के बाद, 16 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। संविधान पीठ इस मामले पर 23 दिन के भीतर फैसला सुनाएगी। संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस रंजन गोगोई 17 नवंबर को रिटायर होंगे। अदालत ने सभी पक्षों को मोल्डिंग ऑफ रिलीफ पर तीन दिन में लिखित जवाब पेश करने को कहा था। हिंदू और मुस्लिम, दोनों पक्षों ने कोर्ट में लिखित नोट दाखिल कर दिया था।